ब्रज भाषा में ग्वाल के छन्द भाग - 1
(प्रस्तुति नवीन चतुर्वेदी )
और बिस जेते, तेते प्रानन हरैया होत,
बंसी की धुन की कबू जात ना लहर है|
एक दम सुनत ही, रोम रोम गस जात,
ब्योम बार डारे, करे बेकली गहर है|
'ग्वाल' कबि तो सों, कर ज़ोर कर पूछ्त हों,
साँची कह दीजो, जो पे मो ही पे महर है|
होठ में, कि फूंक में, कि आंगुरी की दाब में, कि-
बाँस में, कि बीन में, कि धुन में जहर है||
भारत भूमि की माटी से उपजे देशी समाचार साहित्य, काव्य और संस्कृति का संकलन । नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द'' - प्रधान सम्पादक , ग्वालियर टाइम्स समूह , प्रधान कार्यालय - 42 गांधी कालोनी , मुरैैना म. प्र. व्हाटस एप्प नंबर 7000998037 एवं ई मेल पता : gwaliortimes@hotmail.com
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